अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब हमारा देश आजाद हुआ। इस आजादी को हासिल करने में देश वासियों ने किस प्रकार अपना खून-पसीना एक किया और किस प्रकार बच्चों से लेकर बड़ों तक ने अपनी कुर्बानी दी, यह बात वे ही लोग अच्छे से समझते हैं, जिन्होंने या तो स्वयं उस महासंग्राम को अपनी आंखों से देखा या फिर जिन्हें अपने अभिभावकों से उसके बारे में जानने-सुनने को मिला। लेकिन आज के बच्चे अपने पुरखों के उस महान बलिदान से अपरिचित न रह जाएं, यह भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। क्योंकि तभी उन्हें इस आजादी का महत्व समझ में आ सकेगा और तभी वे दूसरों की आजादी का भलीभांति सम्मान करना सीख सकेंगे। और इस महत्वपूर्ण कार्य का जिम्मा उठाया है बच्चों के समर्पित एवं चर्चित लेखक साबिर हुसैन की कलम ने 'जीतेंगे हम' बाल उपन्यास के रूप में।
साबिर हुसैन हिन्दी के ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने ताउम्र लिखा है, बेहिसाब लिखा है और उम्दा किस्म का लिखा है। उनकी लिखी हुई कहानियां और बाल उपन्यास धारावाहिक रूप में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं, जिनमें नूपुर नछत्र, आजादी के दीवाने, पीली पृथ्वी, पापा की खोज, हिम मानवों के देश में (बाल उपन्यास) भंवर (कहानी संग्रह) प्रमुख हैं। बाल साहित्यकारों के लिए यह गर्व का विषय है कि उन्हें पढ़ कर एक नहीं अनेक पीढि़यां बड़ी हुई हैं। सिर्फ यही नहीं बाल साहित्यकारों में भी एक ऐसी जमात है, जिसने उनसे प्रेरणा ली और उनकी रचनाओं को देख-सुन कर अपनी लेखनी को संवारने का काम किया।
ऐसे लोकप्रिय लेखक की यह औपन्यासिक कृति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रष्ठभूमि पर केंद्रित है, जिसमें अंग्रेजों के दमन और भारतीयों की आजादी के लिए दीवानगी को बेहद कुशलता के साथ उकेरा गया है। लेखक ने उपन्यास में न सिर्फ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनेक जाबांज बहादुरों की सच्ची गाथाओं को पाठकों के साथ साझा किया है, वहीं नायक के बहाने यह भी बताने का प्रयास किया है कि आजादी के इस महासंग्राम में सिर्फ युवाओं और बुजुर्गों ने ही हिस्सा नहीं लिया, बल्कि बच्चों ने भी अपनी जान की बाजियाँ लगाई हैं।
पुस्तक में लेखक ने बेहद सधे हुए तरीके से घटनाक्रम को बयां किया है, जिससे इसका कथानक बेहद प्रभावकारी बन पड़ा है। नायक का प्रारम्भ में अपनी बहन मीनाक्षी की प्रेरणा से गांव के लाेगों को स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां सुनाना, इस कार्य के लिए पुलिस द्वारा उसका पिटना, फिर शहर जाकर अंग्रेजों के दमन को साक्षात देखना, अपने फूफा और बहन के द्वारा अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किये जा रहे प्रयासों से दो-चार होना, एक स्वतंत्रता सेनानी को फांसी के तख्ते पर तड़पते हुए देखना और उसका बदला लेने के लिए अपने प्राणों की परवाह न करना, यह पूरी ऐसी दास्तान है, जिसे पाठक दम साधे हुए पढ़ता चला जाता है। और इसके लिए लेखक निश्चय ही बधाई का पात्र है।
नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक बच्चों की रूचि को ध्यान में रखते हुए अत्यंत साज-सज्जा के साथ प्रकाशित हुई है। और इसे कथानक के अनुरूप जीवंत चित्रों से सजाया है चर्चित चित्रकार पार्थ सेनगुप्ता ने। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि यह बच्चों के लिए एक अनमोल तोहफे के समान है, जिसे बच्चों को जन्मदिन के तोहफे के रूप में भी दिया जा सकता है। चूंकि यह पुस्तक साबिर हुसैन के निधन (2 जुलाई 2013) के बाद प्रकाशित हुई है, इसलिए यह उनके लिए एक श्रद्धांजलि के समान है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि पुस्तक पाठकों और आलोचकों दोनों को पसंद आएगी और बालसाहित्य जगत में एक सम्मानजनक स्थान बनाने में कामयाब होगी।
पुस्तक: जीतेंगे हम
लेखक: साबिर हुसैन
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