एक बहुत ही प्रेरणा देने वाली कविता पेश है।ठोकरें ख़ाता हूँ पर
"शान" से चलता हूँ
मैं खुले आसमान के नीचे
सीना तान के चलता हूँ
मुश्किलें तो "साज़" हैं ज़िंदगी का
"आने दो-आने दो".....
उठूंगा , गिरूंगा फिर उठूंगा और
आखिर में "जीतूंगा मैं ही"
ये ठान के चलता हूँ..
Be pisitive, more pisitive
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