भीड़चाल
: आप अपने निर्णय स्वयं लेते है?
एक दिन की बात है मैं रेलवे स्टेशन पर खड़ा था एंव ट्रेन का इंतजार कर रहा था| मैं जिस ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था उसमें आरक्षण का कोई सिस्टम नहीं था| प्लेटफ़ॉर्म पर इतनी भीड़ थी कि यह बात स्पष्ट थी कि जगह उसी को मिलेगी जो भीड़ को पछाड़ कर सबसे पहले ट्रेन में चढ़ेगा| तभी घोषणा हुयी – “जयपुर को जाने वाली गाड़ी 40 मिनट की देरी से प्लेटफार्म नम्बर 1 पर आएगी|” इस घोषणा के बाद सभी यात्री आराम से बैठ गए एंव कुछ व्यक्ति नींद की मीठी मीठी झपकियाँ ले रहे थे|
कुछ ही मिनट बाद एक व्यक्ति उठकर पश्चिम की तरफ आगे बढ़ा जहाँ से ट्रेन आने वाली थी| तभी कुर्सी पर बैठे एक व्यक्ति ने अपने पास बैठे मित्र से कहा “देखो वह व्यक्ति आगे गया है, शायद ट्रेन आ गयी जल्दी चलो नहीं तो जगह नहीं मिलेगी|” ऐसा कहकर वह दोनों व्यक्ति आगे की तरफ भागे जहाँ पर ट्रेन आकर रूकती है| उन दोनों व्यक्तियों को भागते हुए देख, आराम से बैठी भीड़ में हलचल हुयी तथा भीड़ भी उठकर आगे की तरफ चली गयी जहाँ ट्रेन आकर रूकती है| भीड़ को देखकर में भी आगे बढ़ गया| आगे जाकर पता चला कि ट्रेन नहीं आयी है| सबसे पहले जो व्यक्ति आगे की तरफ गया था वो तो ऐसे ही टहल रहा था|
उस दिन मुझे यह बात समझ में आयी की,
“अगर ज्यादातर व्यक्ति एक ही दिशा में जा रहे है तो इसका मतलब यह नहीं है की वह सही दिशा में आगे बढ़ रहे है|”
उस दिन मुझे अपनी सोचने की क्षमता एंव निर्णय क्षमता पर संशय हुआ क्योंकि जब सब आगे तरफ जा रहे थे तब मैं भीड़ के साथ साथ आगे भागा और मैंने एक पल के लिए भी इस बात पर गौर नहीं किया कि अभी अभी रेलवे ने यह घोषणा की ट्रेन 40 मिनट बाद आएगी|
दोस्तों आज हमारी समस्याओं की एक वजह यह भी है कि हम स्वतंत्र रूप से नहीं सोचते एंव अपना निर्णय दूसरे व्यक्तियों द्वारा लिए गए निर्णयों के आधार पर ले लेते है| दोस्तों कोई विद्यार्थी अपने करियर के बारे में निर्णय लेता है तो वह अपना निर्णय इस आधार पर लेता है कि उसके मित्रों ने कौनसा क्षेत्र चुना है अथवा उसके परिवार का सदस्य पहले से उस क्षेत्र में है या नहीं| दोस्तों विद्यार्थी को निर्णय स्वतंत्र रूप से एंव अपनी रुचि के आधार पर लेना चाहिए| जिस तरह प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव एंव जीवन की परिस्थितियां
अलग अलग होती है उसी तरह एक ही प्रकार का निर्णय सभी व्यक्तियों के लिए सही नहीं हो सकता|
दोस्तों समाज में अन्धविश्वाश एंव कुप्रथाओं (जैसे दहेज़ प्रथा, बेटी के जन्म को अपसगुन मानना आदि) का चलन भी इसी कारण होता है कि व्यक्ति स्वतंत्र रूप से नहीं सोचता एंव अपना निर्णय इस आधार पर लेता की समाज में क्या प्रचलित है न की इस आधार पर कि क्या सही है और क्या गलत?
ज्यादातर बुरी आदतों एंव धुम्रपान करने वालों के धुम्रपान करने की शुरुआत भी स्वतंत्र सोच के अभाव के कारण होती है और वह धुम्रपान इसीलिए शुरू करता है की उसके मित्र भी ऐसा करते है|
आज ज्यादात्तर युवा नौकरी के लिए दर दर भटकते है और ऐसी नौकरी करने के लिए भी तैयार हो जाते जिसमें वह अपनी काबिलियत का सही एंव पूर्ण उपयोग नहीं कर सकते| वह यह नहीं सोचते की वह अपने दम कुछ भी कर सकते है और इसके लिए किसी नौकरी का मिलना आवश्यक नहीं| दोस्तों ज्यादातर लोग नौकरी को इतनी ज्यादा प्राथमिकता इसीलिए देते है क्योंकि भीड़ इसी दिशा में आगे बढ़ रही है और वह भीड़ का साथ नहीं छोड़ना चाहते|
“भीड़ हमेशा उस रास्ते पर चलती है जो रास्ता आसान लगता हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भीड़ हमेशा सही रास्ते पर चलती है|”
दोस्तों
स्वंय
को
जगाओ,
अपने
सपनों
को
जगाओ,
अपने
मन
को
स्वतंत्र
बनाओ,
अपने
निर्णय
स्वंय
लो
क्योंकि
“आप
से
बेहतर
आपको
कोई
नहीं
जानता”|
Thanks…
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