Monday, November 9, 2015

नवरात्र पूजन से जुड़ी सबसे अहम परंपराओं में से एक हैकन्या पूजन।

नवरात्र पूजन से जुड़ी सबसे अहम परंपराओं में से एक हैकन्या पूजन। इसका धार्मिक कारण यह है कि कुंवारी कन्याएं देवी मां के समान ही पवित्र और पूजनीय होती हैं। तो आगे की तस्वीरों पर क्लिक करें और जानें कैसे करें कन्या पूजन और किस वर्ष की कन्या के पूजन से मिलता है कौन सा लाभ-

1.दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। एक वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन, इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह प्रसाद नहीं खा सकतीं और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। इसलिए शास्त्रों में दो से दस वर्ष की आयु की कन्याओं का पूजन करना ही श्रेष्ठ माना गया है। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है। ऐसी मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी कन्या पूजन से होती हैं।

2.कैसे करें कन्या पूजन नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। पूजन के दिन कन्याओं पर जल छिड़क कर रोली-अक्षत से उनका पूजन कर भोजन कराएं तथा भोजन उपरांत उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें और यथाशक्ति दान दें।
3. दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता दूर होती है। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।



4.चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है, जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।
7.छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

8.आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है।
9. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।

10. दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।



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