Thursday, October 22, 2015

प्रेरक प्रसंग - सच्ची सेवा - भावना!

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एक संत ने एक विश्व-विद्यालय आरंभ किया। इस विद्यालय का प्रमुख उद्देश्य था ऐसे संस्कारी युवक-युवतियों कानिर्माण जो समाज के विकास में सहभागी बन सकें।

एक दिन उन्होंने अपने विद्यालय में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया। जिसका विषय था - "जीवों पर दया एवं प्राणिमात्र की सेवा।"

निर्धारित तिथि को तयशुदा वक्त पर विद्यालय के कॉन्फ्रेंस हॉल में प्रतियोगिता आरंभ हुई। किसी छात्र ने सेवा केलिए संसाधनों की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि हम दूसरों की तभी सेवा कर सकते हैं जब हमारे पास उसके लिएपर्याप्त संसाधन हों। वहीं कुछ छात्रों की यह भी राय थी कि सेवा के लिए संसाधन नहींभावना का होना जरूरी है।

इस तरह तमाम प्रतिभागियों ने सेवा के विषय में शानदार भाषण दिए। आखिर में जब पुरस्कार देने का समय आयातो संत ने एक ऐसे विद्यार्थी को चुनाजो मंच पर बोलने के लिए ही नहीं आया था।

यह देखकर अन्य विद्यार्थियों और कुछ शैक्षिक सदस्यों में रोष के स्वर उठने लगे। संत ने सबको शांत कराते हुएबोले, 'प्यारे मित्रो  विद्यार्थियोआप सबको शिकायत है कि मैंने ऐसे विद्यार्थी को क्यों चुनाजो प्रतियोगिता मेंसम्मिलित ही नहीं हुआ था। दरअसलमैं जानना चाहता था कि हमारे विद्यार्थियों में कौन सेवाभाव को सबसे बेहतरढंग से समझता है।

इसीलिए मैंने प्रतियोगिता स्थल के द्वार पर एक घायल बिल्ली को रख दिया था। आप सब उसी द्वार से अंदर आएपरकिसी ने भी उस बिल्ली की ओर आंख उठाकर नहीं देखा। यह अकेला प्रतिभागी थाजिसने वहां रुक कर उसकाउपचार किया और उसे सुरक्षित स्थान पर छोड़ आया। सेवा-सहायता डिबेट का विषय नहींजीवन जीने की कला है।

जो अपने आचरण से शिक्षा देने का साहस  रखता होउसके वक्तव्य कितने भी प्रभावी क्यों  होंवह पुरस्कारपाने के योग्य नहीं है।'



thanks for read




ye maine hindi sahity darpan se liya tha....aap open kar sakte 

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